कबूतर ताकते हैं छत से कोई दाना लायेगा
इस सुन्दर से उपवन में कोई दीवाना लायेगा
बहुत उत्सुक हैं वो लेकिन चुपचाप बैठें हैं ,
कोई लायेगा खुशियाँ उनकी या कोई ना लायेगा
हुई आहट की वो फुर्र से उड़े ,फिर वापस उन्हें नीचे ,
किसी खामोश मुहब्बत का ही फसाना लायेगा
टहलना तो बहुत ही कायदे से तुम टहलना "नील ",
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा मंच के लिए इस कविता को चुनने के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteइस कविता को चुनने के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं
Deleteकबूतर ताकते हैं छत से कोई दाना लायेगा
ReplyDeleteइस सुन्दर से उपवन में कोई दीवाना लाएगा
बहुत प्यारी रचना है नीलांश जी । मनभावन रचना के साथ दीवाली कि हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। 🙏🙏💐💐💐💐💐
आपको बहुत बहुत धन्यवाद । दीपावली की शुभकामनाएं 🌻🌅🌅🌻
Deleteबहुत उम्दा, अलहदा सृजन सुंदर।
ReplyDeleteमैं आपकी टिप्पणियों के लिए आभारी हूं। सस्नेह। नील
DeleteHello thanks for posting this
ReplyDeleteAppreciate this blog posst
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