कभी कभी जब फर्ज़ पूछता है सवाल ,
कि मुझ में भी खुदा है ,ये आता है ख्याल!
हज़ारों राह हैं चुप चाप भी पूरा कर लूँ ,
मगर देना परा खुद को खुद ही से निकाल!
तू ना तो मकरी है, ना ही तू मछुआरा है ,
क्या ज़िद्द है तेरी कि तू फेकता है ये जाल!
समेटी है जो तूने खुशियाँ , वो छुपाना नहीं ,
पेड़ बन जायें वो ,बीज ना तू रखना सम्भाल !
तेरी कमी में कमज़ोर गर हो जाये "नील ",
ये होगी वादा खिलाफ़ी ,तू तो है मिसाल !!!
No comments:
Post a Comment