विविध विचित्र विषों को संचित करते हो
कितनों को अमृत पीने से वंचित करते हो
कितनों को अमृत पीने से वंचित करते हो
ये ज्ञात नहीं कितनों को अह्लादित करते हो ,
हर आयाम अपने ही मनोवांछित करते हो
हर आयाम अपने ही मनोवांछित करते हो
अहम् का पर्वत राहों में ,मत मानो अपनी भूल
नाम छोटी योगदान में भी अंकित करते हो
नाम छोटी योगदान में भी अंकित करते हो
तुम अपनी उँगलियों से लिखो कोई इतिहास ,
उनको अकारण ही सब पर इंगित करते हो
उनको अकारण ही सब पर इंगित करते हो
क्षमा ,दया ,धैर्य , समभाव सब रखते हो गौण ,
क्रोध ,मोह ,मद ,आडम्बर आप त्वरित करते हो
क्रोध ,मोह ,मद ,आडम्बर आप त्वरित करते हो
ये कैसी श्रद्धा जो निश दिन करते हो पूजा ,
हर दिन परमेश्वर को पर लज्जित करते हो
हर दिन परमेश्वर को पर लज्जित करते हो
वर्तमान कर्मा का रथ है,भविष्य सारथी है ,
अतीत अनुभवों का गुरु ,क्यों चित्त चिंतित करते हो
आओ अपने हर स्वासों को ऐसी धुन दे दो ,
जो कहे सब "नील" तुम रोमांचित करते हो
जो कहे सब "नील" तुम रोमांचित करते हो
सुन्दर
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर आने के लिए और अपनी टिप्पणी प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, सुशील जी
Deleteआओ अपने हर स्वासों को ऐसी धुन दे दो ,
ReplyDeleteजो कहे सब "नील" तुम रोमांचित करते हो
सच रोमांचकारी क्षण हमेशा जेहन में कैद रहते हैं
बहुत सुन्दर
शुभ दीपावली!
मैं टिप्पणियों के लिए आभारी हूं, कविता दी
Deleteशुभ दीपावली, भाई दूज