मुद्दत हो गयी मैंने तुझको भेजा ही नहीं कोई डाक सनम
मैं साथ ही हूँ साँसों की तरह ,तू खिड़की को ना ताक सनम
मैं साथ ही हूँ साँसों की तरह ,तू खिड़की को ना ताक सनम
ये हिज्र भी बड़ा है सौदाई ,दर पर मासूम सा आ जाये ,
मैं दरवाजा गर खोलूँ तो ,हो जाता है बेबाक सनम
मैं दरवाजा गर खोलूँ तो ,हो जाता है बेबाक सनम
हम बादल जो बन जायेंगे ,तेरे घर के ऊपर आयेंगे ,
हम बिजली ना चमकायेंगे ,हमे दुश्मन में न आँक सनम
हम बिजली ना चमकायेंगे ,हमे दुश्मन में न आँक सनम
हमने तुमको सच्चा जाना ,कुछ कह पाया इन गज़लों से ,
न हम ही थे मायूस कभी ,न तुम ही थे चालाक सनम
न हम ही थे मायूस कभी ,न तुम ही थे चालाक सनम
ये जीवन सुबह की है धूप ,इक रात ने चुपके से बोला ,
इक शाम सा हूँ मैं बौराया , हूँ खुद पे अब आवाक सनम
इक शाम सा हूँ मैं बौराया , हूँ खुद पे अब आवाक सनम
तूने पूछा था जाते पल ,क्या दूँ तुझको ए "नील " मेरे ,
तू दर्जी है मेरे मन का , दे सपनों के पोशाक सनम
तू दर्जी है मेरे मन का , दे सपनों के पोशाक सनम
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा मंच के लिए इस रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
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