Monday, October 14, 2019

Quest /ज़ुस्तज़ू

दो   घड़ी  के  ही  इस ज़माने में ,
ज़ुस्तज़ू  है कर दिखाने में  !

होता  है आसाँ  पार करने में ,
आती है मुश्किल पुल  बनाने में ?

रात और चाँद दोनों आये हैं ,
भूल हो जाये  ना निभाने में ?

सात  रँग  के ज़ेहन में फूल खिले ,
सादगी से यूँ पेश आने में !

हो तसल्ली कि  कुछ नया कर दें ,
कुछ कमी रह गयी पुराने में ?

जानते ही तुम भूल  जाओगे  !
एक मुद्दत हुई बताने में ?

उड़ रहे पंछी , सुबह आयी है !
देर काफी है शाम आने में !

तारे हैं दूर , पास है सूरज
क्या बुराई टिमटिमाने में ?

तुम सा कोई चारागार कहाँ ,
वक़्त कटता  है दवाखाने में !

रोज़ खुद से ही जंग क़ायम है ,
दर्द होता है हार जाने में  !

"नील "  कह दो या कह दो गंगा ,
पानी तो पानी  ,इस फ़साने में

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