दो घड़ी के ही इस ज़माने में ,
ज़ुस्तज़ू है कर दिखाने में !
होता है आसाँ पार करने में ,
आती है मुश्किल पुल बनाने में ?
रात और चाँद दोनों आये हैं ,
भूल हो जाये ना निभाने में ?
सात रँग के ज़ेहन में फूल खिले ,
सादगी से यूँ पेश आने में !
हो तसल्ली कि कुछ नया कर दें ,
कुछ कमी रह गयी पुराने में ?
जानते ही तुम भूल जाओगे !
एक मुद्दत हुई बताने में ?
उड़ रहे पंछी , सुबह आयी है !
देर काफी है शाम आने में !
तारे हैं दूर , पास है सूरज
क्या बुराई टिमटिमाने में ?
तुम सा कोई चारागार कहाँ ,
वक़्त कटता है दवाखाने में !
रोज़ खुद से ही जंग क़ायम है ,
दर्द होता है हार जाने में !
"नील " कह दो या कह दो गंगा ,
पानी तो पानी ,इस फ़साने में
ज़ुस्तज़ू है कर दिखाने में !
होता है आसाँ पार करने में ,
आती है मुश्किल पुल बनाने में ?
रात और चाँद दोनों आये हैं ,
भूल हो जाये ना निभाने में ?
सात रँग के ज़ेहन में फूल खिले ,
सादगी से यूँ पेश आने में !
हो तसल्ली कि कुछ नया कर दें ,
कुछ कमी रह गयी पुराने में ?
जानते ही तुम भूल जाओगे !
एक मुद्दत हुई बताने में ?
उड़ रहे पंछी , सुबह आयी है !
देर काफी है शाम आने में !
तारे हैं दूर , पास है सूरज
क्या बुराई टिमटिमाने में ?
तुम सा कोई चारागार कहाँ ,
वक़्त कटता है दवाखाने में !
रोज़ खुद से ही जंग क़ायम है ,
दर्द होता है हार जाने में !
"नील " कह दो या कह दो गंगा ,
पानी तो पानी ,इस फ़साने में
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