Saturday, October 12, 2019

Urge on / तलब

एक  चाय  की  तलब  को  छोड़  भी  सकते  हो  क्या ,
पास  खुद  के  खुद  को अब  मोड़  भी  सकते हो  क्या !

ताश  के  पत्तों  के  घर  पर  भी अना कर  लेते  हो ,
नीब  अब  अपने मकाँ   में  जोड़  भी  सकते हो क्या !

वायदों  के  जाल  में  फँस  जाते  हो  ,फँसाते   हो  ,
तुम  ही  कह   दो  चाँद  तारे  तोड़  भी  सकते हो  क्या !

है  तुम्हारे  प्यार  का  इम्तेहाँ ! ,उस  नीम  से ,
तुम  शहद  की  बूँद , निचोड़  भी  सकते हो  क्या  !

गुल्लकों  में  क़ैद  खुशियाँ ,  किस शमाँ  का  इंतज़ार  ?
"नील " हर  कूचे  में  उनको  फोड़  भी  सकते हो  क्या !!

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