Wednesday, October 9, 2019

Limit/सीमा


एक हिरण   सा  मन  है अपना ,कोई  कातिल ! ना  आ  जाये ,
कैसा  हो  हम सब  का  सपना ,अंतिम  मंजिल  ना  आ जाये !

सब  ने  सीमा  तय  कर  ली  है ,इंसान  को  तय करना  है ,
सागर  भी  मनमानी  करता  जब  तक  साहिल  ना  आ  जाये !

करते  हो  करनी  से  सौदा , पर  तुम में  तो  है  कितना  बल ,
कब  तक  समझोगे  जब  तक  कि तुमसे  काबिल  ना  आ  जाये !

हर्फों  को  तुम  पढ़  लेना ,आँखों  में  ना  जाना  डूब , 
चोटी   तक  जाने से  पहले  "नील " पे  दिल  ना  आ  जाये !

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