एक हिरण सा मन है अपना ,कोई कातिल ! ना आ जाये ,
कैसा हो हम सब का सपना ,अंतिम मंजिल ना आ जाये !
सब ने सीमा तय कर ली है ,इंसान को तय करना है ,
सागर भी मनमानी करता जब तक साहिल ना आ जाये !
सागर भी मनमानी करता जब तक साहिल ना आ जाये !
करते हो करनी से सौदा , पर तुम में तो है कितना बल ,
कब तक समझोगे जब तक कि तुमसे काबिल ना आ जाये !
कब तक समझोगे जब तक कि तुमसे काबिल ना आ जाये !
हर्फों को तुम पढ़ लेना ,आँखों में ना जाना डूब ,
चोटी तक जाने से पहले "नील " पे दिल ना आ जाये !
चोटी तक जाने से पहले "नील " पे दिल ना आ जाये !
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