दो राहों पर जाकर करते हैं खुद का पहचान ,
अपनी राहों का रहबर खुद बनता है इंसान!
काले बादल और बिजली की आहट सुन कर के ,
चींटी सा बन जाये तो ,हो जाये सब आसान !
करते हैं इस घर की दीवारों से सब प्यार ,
अपने घर में भी लेकिन दो दिन के हैं मेहमान
कैसी फसलों के चक्कर में पड़ जाते हो "नील ",
तेरे ही कुछ कागज़ पर है हर्फों का खलिहान
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