ढूँढने चला वो
अपने तस्वीर को ,
वो तस्वीर
जो कल की पहचान थी
उसकी ,
और
खो गया अतीत में ,
एक ख्वाब आया
और उसे
ले गया
एक दूर अनजाने
शहर में ,
जहाँ लगी हुई थी
कई तस्वीर
और बोल रही थी उससे
कि तू कल कि तस्वीर
में न उलझ ,
जा देख ले
उन दो आँखों में
अपने प्रत्यक्ष रूप को ,
वो आँखें
तुझे
एक अटूट पहचान देगी ,
वो इंतज़ार कर रही है
तेरा ,
जा ,देर न कर
वरना
तेरी पहचान हम जैसो
कि हो जायेगी
बस बोलती तस्वीर जैसी ...
sunder bhavabhivyakti.badhai.
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना....
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