राहों को मोड़ कहीं दूर चला जाता हूँ
तेरे दिए बस वो पल हैं ज़ेहन में
उनके सहारे कहीं दूर चला जाता हूँ
तू याद रखना उस जुदाई को बेशक
मिलन को लिए कहीं दूर चला जाता हूँ
तुने ही गम से उबारा था तब
तेरे गम में ही अब कहीं दूर चला जाता हूँ
कांटें मिलें या मिले मुझको पत्थर
तेरे दर को छोर कहीं दूर चला जाता हूँ
बदले न बदले इस ज़माने की रश्मे
खुद को बदल कहीं दूर चला जाता हूँ
uttam rachana
ReplyDeleteतू याद रखना उस जुदाई को बेशक
ReplyDeleteमैं मिलन को लिए कहीं दूर चला जाता हूँ
सुन्दर अभिव्यक्ति
उदास सी रचना ..अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeletebas bloging se door mat jayeeyega ..
ReplyDeleteबदले न बदले इस ज़माने की रश्मे
ReplyDeleteखुद को बदल कहीं दूर चला जाता हूँ bhut bhut hi acchi rachna...