और उस पर
परी हुई ओस की बूँदें
चमक रही हैं सूरज की किरणों से ...
और नंगे पाँव चल हम सुबह
के वातावरण में
अपने नेत्रों की ज्योति
का वर्धन करते हैं...
और हर सांझ वहाँ
खेल कूद करते हैं
बिना ये सोचे कि
कल सुबह की किरणों के साथ जब हम
अपनी आँखें खोलेंगे ...
तो ये हरे- भरे घास रोयेंगे
हमारी आँखों की चमक को
सुरक्षित रखने के लिए !
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