स्वागत किया था बौछारों ने
बौराई हवा भी तब संगदिल थी
चली जायेगी अपने देश प्रिये
तब बेगानों की बस इक महफ़िल थी
न जाने उनसे मिला मैं किस तरह
कोई विधान था या ये नियति थी
मनसा पुष्पों का संकलन किया
उन्हें विदा दूँ शायद यही रीती थी
वक़्त थमा जब वो गुजरे
मैं बोलूं कुछ या देख लूं बस
ये आखिरी मिलन है सावन
ज़रा हौले - हौले तू थम के बरस
हमसे कुछ न कहा गया तब
बहारों ने भेजा उन्हें प्रेम मेरा
गिरे पुष्प उसके आनन पर
ये संजोग था निश्चल प्रेम का
अन्तिम शाम बनी है स्वर्णिम
वो निश्चलता अब भी है मन में
अधरों पर आ जाती गीतों में
पन्नो पर गध्य -काव्यों के सृजन में
बौराई हवा भी तब संगदिल थी
चली जायेगी अपने देश प्रिये
तब बेगानों की बस इक महफ़िल थी
न जाने उनसे मिला मैं किस तरह
कोई विधान था या ये नियति थी
मनसा पुष्पों का संकलन किया
उन्हें विदा दूँ शायद यही रीती थी
वक़्त थमा जब वो गुजरे
मैं बोलूं कुछ या देख लूं बस
ये आखिरी मिलन है सावन
ज़रा हौले - हौले तू थम के बरस
हमसे कुछ न कहा गया तब
बहारों ने भेजा उन्हें प्रेम मेरा
गिरे पुष्प उसके आनन पर
ये संजोग था निश्चल प्रेम का
अन्तिम शाम बनी है स्वर्णिम
वो निश्चलता अब भी है मन में
अधरों पर आ जाती गीतों में
पन्नो पर गध्य -काव्यों के सृजन में
आपकी कविता में प्रेम का सकारात्मक स्वरुप देखकर अच्छा लगता है............बढ़िया
ReplyDeletebhut hi khubsurat shabd rachna hai...
ReplyDeleteगिरे पुष्प उसके आनन पर
ReplyDeleteये एक संजोग था निश्चल प्रेम का
bilkul
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवक़्त थमा जब वो गुजरे
ReplyDeleteउन्हें बोलूं कुछ या देख लूं बस
ये आखिरी मिलन है सावन
ज़रा हौले हौले तू थम के बरस
काफी भावपूर्ण रचना है
अच्छे लेखन के लिए बधाई