Tuesday, May 31, 2011

एहसास



एक  तपतपाती   धुप   में  चलते   हुए  
कुछ  सुनाते  कुछ  सुनते  हुए 
चला  जाता  है  पूरा एक  दिन  
पर 

हर  बार  स्वेत  बूंदों  पर 
हाथ  फेरती  मद्धम  हवा  कहीं 
वृक्षों  के   स्पर्श  से  अमृतमय  होकर  एहसास  दिलाती 
है  कि    राह   में  अकेला  नहीं  है  कोई 

फिर  रेत  के  कण  जब  खेलने  लगते  हैं  आंख मिचौली 
तो  कहीं  से  एक  बौछार  आ  जाती   है 
बादलों  से  गुलाब  जल  लेकर  और  एहसास  होता 
है  कि  राह  में  अकेला  नहीं  कोई 

जब  शूल   चुभते    हैं  पाँव     में  
और   पास  के  किसी उपवन  में 
पड़े  गेंदे   के  पौधे   के  हरे  पत्ते  से 
उनके  रुधिर  को  ढकना  चाहता  हूँ  तो 
तुम्हारे  हाथों  की  मेहँदी  का 
स्मरण  हो  जाता  है  जब  पिछले  सावन  हम  और  तुम 
इसी  उपवन  में  भ्रमण  किया  करते  थे   
तुम्हारे  हाथों  का  लाल   रंग   जैसे   मेरे   हर  सुबह  की 
सूरज  जैसा लगता   था  ,


हमेशा  मुझे  संबल  देता  हुआ  
वैसे  ही  गेंदे  के  पत्ते  एहसास  दिलाते  हैं 
कि  राह  में  अकेला  नहीं  है  कोई  .....

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