एक तपतपाती धुप में चलते हुए
कुछ सुनाते कुछ सुनते हुए
चला जाता है पूरा एक दिन
पर
पर
हर बार स्वेत बूंदों पर
हाथ फेरती मद्धम हवा कहीं
वृक्षों के स्पर्श से अमृतमय होकर एहसास दिलाती
है कि राह में अकेला नहीं है कोई
फिर रेत के कण जब खेलने लगते हैं आंख मिचौली
तो कहीं से एक बौछार आ जाती है
बादलों से गुलाब जल लेकर और एहसास होता
है कि राह में अकेला नहीं कोई
जब शूल चुभते हैं पाँव में
और पास के किसी उपवन में
पड़े गेंदे के पौधे के हरे पत्ते से
उनके रुधिर को ढकना चाहता हूँ तो
तुम्हारे हाथों की मेहँदी का
स्मरण हो जाता है जब पिछले सावन हम और तुम
इसी उपवन में भ्रमण किया करते थे
तुम्हारे हाथों का लाल रंग जैसे मेरे हर सुबह की
सूरज जैसा लगता था ,
हमेशा मुझे संबल देता हुआ
हमेशा मुझे संबल देता हुआ
वैसे ही गेंदे के पत्ते एहसास दिलाते हैं
कि राह में अकेला नहीं है कोई .....
bhut hi acchi rachna...
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