Tuesday, May 10, 2011

मुमकिन है कि!

अथाह समुद्र के मध्य
उनकी किश्ती
ढूंढ रही है
अपनी दिशा को !



तभी एक बूढ़े ने
कहा
कि मैंने तारों भरी
काली रातों में
अपने इन बालों को 

सफ़ेद होते देखा है!


आसमान को ओढ़ के

मैंने तालाब में
अपने झुडियों को 

सूरज की  किरणों से 

खेलते देखा है !


मुमकिन है कि
उस तारे के सीध में चले तो
मंजिल मिल जाए!

3 comments:

  1. bahut sundar kavita hai Nishant ji .

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  2. ise open ker den taki main suvidhanusaar vatvriksh ke liye le sakun

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  3. उम्दा। खुबसुरत रचना के लिए आभार।

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