हाँ ,भूल गया
उसे जो अजनबी था !
आया था वो एक लहर के साथ
उस विशाल समुद्र के
जहाँ
रोज़ सिप चुनने जाया करता था
अपने घर के लिए !
वो शंख
एक लहर के साथ आया
और
उसके भीतर झाँख कर
उसकी धडकनों को सुना!
तो पाया कि
उसने समुद्र का सारा दर्द
अपने भीतर
समेट लिया है !
उस समुद्र का
जो सभी नदियों को
अपना लेता है
जब उसे सब भूल जाते हैं!
उस नदी को जो
अपने जीवन
के हर मोड़ पर
कभी गंगा तो कभी यमुना बनकर
हमें जीने की राह दिखाती है!
कहीं मन के मैल तो कहीं
आधुनिकरण के कचड़े को
दूर करते जाती है !
ये समुद्र बहुत दूर है
हमारे धरातल से !
लेकिन
उसे वो दर्द सुनाई पर जाते हैं
जब उसे सब भूल जाते हैं!
उस नदी को जो
अपने जीवन
के हर मोड़ पर
कभी गंगा तो कभी यमुना बनकर
हमें जीने की राह दिखाती है!
कहीं मन के मैल तो कहीं
आधुनिकरण के कचड़े को
दूर करते जाती है !
ये समुद्र बहुत दूर है
हमारे धरातल से !
लेकिन
उसे वो दर्द सुनाई पर जाते हैं
पर
डरता है हमेशा बताने से
इसलिए शंख
कभी -कभी ही लहरों के साथ आते हैं !
फिर खो जाते हैं !
कहीं
अति आधुनिकता के कंक्रीट ना आने लगे
इस जगत के उन्मुक्त लहरों से
जो सिर्फ आगे बढ़ना जानती है
उसके लहरों को चुनौती देने !
..निशांत
डरता है हमेशा बताने से
इसलिए शंख
कभी -कभी ही लहरों के साथ आते हैं !
फिर खो जाते हैं !
कहीं
अति आधुनिकता के कंक्रीट ना आने लगे
इस जगत के उन्मुक्त लहरों से
जो सिर्फ आगे बढ़ना जानती है
उसके लहरों को चुनौती देने !
..निशांत
ये जगत कंक्रीट तो बन ही चुका है लेकिन चुनौती हमेशा सब को नई राहें बनाने के लिये प्रेरित करती है---- कचरा भी इस हमे ही ही साफ करना है । बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteशुभकामनायें।
bahut aabhar aapka...ham koshish karte rahenge.
ReplyDeletelahron ko chunauti dete shabd bahut hi achhe hain ,
ReplyDeleteshankh ki dhadkano ko sunna - apratim