जाते जाते
एक सपनो की सीढ़ी
दे गयी वो मेरे अँधेरे कूप
निवास में !
कभी बाहर झाँका नहीं
था !
घुलने लगा मैं
बाह्य बादल में जाकर ,
और
मिटटी की सोंधी खूसबू
मुझे अन्यास ही
उस
सीढ़ी पर चढ़
अपने कृष्ण लोक को
छोड़ने पर
विवश कर देती थी ,
विवश कर देती थी ,
आज
किसी ने
उस कूप को
ढक दिया है
निराशा के काले पत्थर से !
और
साथ रह गए हैं बस मेरे
उस कूप से बाहर आये
मेरे विश्वास !
तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
उस सपनो
के सीढ़ी के लिए ,
नहीं तो
मेरा विश्वास भी दब जाता
उस कृष्ण कूप में ...
अब मैं नहरों का रूख
इस सुखी धरा के ओर
मोड़ दूंगा !
तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteउस सपनो
के सीढ़ी के लिए ,
नहीं तो
मेरा विश्वास भी दब जाता
उस कृष्ण कूप में ...
excellent
तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteउस सपनो
के सीढ़ी के लिए ,
...बहुत सुन्दर ..
ख्वाबो का लाजवाब ताना बना ....
ReplyDeleteWonderful creation Nishant ji .
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