जो मनमुटाव था
वो रेत पर बने निशाँ थे
पाँव के
जो मिट गए
हमारे प्रेम के लहरों में खो कर ...
हमारे बीच
कभी संदेह का आगमन हुआ ही नहीं
क्योंकि हम
एक दूजे में
दो पानी की बूँद जैसे मिल गए थे
जिसे अलग नहीं किया जा सकता ..
आपसी समझ के ताप से वो
वाष्प बनकर फिर से
ओस का निर्माण कर लेते थे
किसी सूखे पत्ते को
आस की बूँद देकर ....
हो सकता है हम बिछूड गए हों
पर तेरे दिए उपहार आज भी
मेरे छत के ऊपर से
बादल बन कर जाया करती हैं
और
गलियों में खेलते बच्चे
बरसात के इंतज़ार में
खुश हो जाते हैं
और उनके चेहरे पर रौनक और पैरों में फूर्ती आ जाती है ...
और फिर मुझे तेरी याद आ जाती है
की तू ऐसे ही आया करती थी
और रोज़ शाम काम से घर लौटने पर
तू मुझे पानी के लिए
पुछा करती थी
और
अपने पल्लू से कभी कभी
मेरे पसीने पोछ दिया करती थी ...
तू हमेशा पास ही रहती है..
साहित्य के रंगों से सुसज्जित रचना शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteहो सकता है हम बिछूड गए हों
ReplyDeleteपर तेरे दिए उपहार आज भी
मेरे छत के ऊपर से
बादल बन कर जाया करती हैं
और
गलियों में खेलते बच्चे
बरसात के इंतज़ार में
खुश हो जाते हैं
और उनके चेहरे पर रौनक और पैरों में फूर्ती आ जाती है ...bahut badhiyaa
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|धन्यवाद|
ReplyDeletebhut hi khubsurat bhaavo se saji rachna...
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