थामने मन को तू मेरे आधार बन आ जाती है
रेत से झरते स्वप्न में, बहार बन आ जाती है
रेत से झरते स्वप्न में, बहार बन आ जाती है
मेरे मन की वीणा वीरानी ,तू तरंगो सी आ जाती है
जब भी होता हूँ एकाकी ,तू अधरों पर आ जाती है
मेरे धुन कोयल सा बोले ,तू ऋतुराज बन आ जाती है
मन को विचरण कराने ,तू परवाज़ बन आ जाती है
मेरे शब्द हैं बंसी जैसे ,तू स्वासों सी आ जाती है
मधुर गीत फिर सुनने ,तू गोपियों सी आ जाती है
मेरा तन थिरके न थिरके ,तू धड़कन बन आ जाती है
जब भी डरता हूँ कल से ,तू बचपन बन आ जाती है
मेरे शब्द हैं कोरे हीरे ,तू रौशनी बन आ जाती है
लिख सकूं रूहानी नगमे ,तू चाँदनी बन आ जाती है
मेरे शब्द हैं कोरे हीरे ,तू रौशनी बन आ जाती है
ReplyDeleteलिख सकूं रूहानी नगमे ,तू चाँदनी बन आ जाती है... bhut khubsurat panktiya.. har shabd jaise chun chun ke piroya hai apne... super...
मेरे शब्द हैं कोरे हीरे ,तू रौशनी बन आ जाती है
ReplyDeleteलिख सकूं रूहानी नगमे ,तू चाँदनी बन आ जाती है
रूहानी शब्द.