हथौड़ा लेकर बढ़ा
वो तोड़ने पत्थर को
कि सड़क बन जाए एक
और जहाँ आने लगे
कुछ चार पहिये इस ..
गाँव को शहर बनाने ...
हाँ वो मजदूर है
जिसने ये सब किया ...
और अब वहाँ
बुलडोज़र बनाने की फैक्ट्री लग गयी है
अब उस सड़क पर चल
किसी दो पहिये या फिर यूँ ही
उसे शहर जाना होगा ...
क्योंकि वो मजदूर है
और मेहनत करना उसका धर्म ...
हाँ , क्योंकि वो मजदूर है ...
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर सुन्दर संवेदनशील मानवीय भावना से सराबोर रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा. बधाई.
ReplyDeleteआपका स्वागत है.
दुनाली चलने की ख्वाहिश...
तीखा तड़का कौन किसका नेता?
मजदूर धर्म का सुन्दर चित्रण..
ReplyDeleteमगर इसके आगे भी एक कविता लिखें आप उनके जीवन पर...
आशुतोष की कलम से....: धर्मनिरपेक्षता, और सेकुलर श्वान : आयतित विचारधारा का भारतीय परिवेश में एक विश्लेषण: