Tuesday, May 17, 2011

बस ये ही मेरी आरज़ू है...



तपते हैं ग्रीष्म में शब्द मेरे 
दृढ- प्रतिज्ञ शीत में ये बनते हैं 

एहसासों के सावन के लिए 
ये मयूर सा हरदम तड़पते हैं 
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अहंकार अगर मेरे शब्दों के 
राहों से मुझको भटकाती है 

तू हल बनकर दर्दों को मेरे 
रौंद चले तब जाती है 
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मन के बंजर धरती पर
तू प्रेम-बीज बो जाती है 

बीजों के पौधे बनने तक 
खुशियों के बादल लाती है 
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फिर सुने धरती पर मेरे
हरे घास हरियाली लाते हैं 

तूफ़ान क्रोध का सहते हैं 
पथिकों के मन को भाते हैं 
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मन-आँगन में नित-दिन 
तू ओस की मरहम लगाती है 

न मुरझाये मेरी हरियाली 
तू शीतलता दे जाती है 
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ऐसा है बस रिश्ता तुझसे 
तू मन- उपवन की खुशबू है 

तू हरदम रहे युहीं खिलते 
बस ये ही मेरी आरज़ू है ...


बस ये ही मेरी आरज़ू है...


4 comments:

  1. आपको बुद्ध पूर्णिमा की ढेर सारी शुभकामनायें

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