Wednesday, May 18, 2011

बढ़ते जाना ओ सजना रे...




तेरी यादों  में  वक़्त  गुज़ारे   ,कभी  हैं  जीते  कभी  हैं  हारे  
न तुम आये न आई खबरिया  ,
आ कर लौटी कितनी बहारें  

चाँद भाये न भाये सितारे , क्या जाऊं मैं नदी किनारे
साथ प्रिये है नहीं अगर जब , बोझल है ये सारे नज़ारे



कोयलिया मुझे रोज़ निहारे, पूछे  क्यों उदास है प्यारे 
ढूँढू  बस तेरे मधुर बोल अब   ,वो थे इन गीतों से न्यारे

तकूँ आस में हरदम द्वारे ,कब आ जाएँ प्रीतम प्यारे 
जाने  है तू कौन डगरिया ,कौन यहाँ अब मुझे संवारे 

न जाने क्या रोग लगा रे , हर पल  मनवा तुझे पुकारे
तनहा तनहा लगे सफ़र अब  ,हर शख्स में तेरा अक्श दिखा रे


वायदे अपने अब तो निभा रे,मन मंदिर में दीप जला रे
पत्थर जैसा   लगे शहर अब ,क्यों देता है मुझे सजा रे 

फिरते है बस मारे मारे, हो गए प्रियतम हम बंजारे
मूक हो गए अधर मेरे अब ,चंचलता भी हुई विदा रे


भुला गया तू लम्हें   सारे ,पहली सावन की   फुहारे 
साथ  तेरे  रहे मेरा  रब   ,बढ़ते जाना ओ सजना रे ...



साथ  तेरे  रहे   मेरा  रब  ,बढ़ते जाना ओ सजना रे...

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मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...