Sunday, May 15, 2011

रंगोली!





तेरे लिए 

चाँद से
चाँदनी चुराई,

सूरज से लाली
हरे भरे पौधे से
हरियाली,

और
बचाया तुझे
अँधेरे से.


अपने मन के
अंतर जोत को 
प्रदीप्त कर ,

और
तेरे दिए
वो
आखिरी वक़्त के
कागज़ पर,

आज
मैंने लिख डाली
है अपनी कहानी ,

तेरे लिए
ओ मेरी हमजोली ,

बनायीं है
देखो कैसी रंगोली !

1 comment:

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...